रिंदों को पाबंदी-ए-दुनिया कहाँ
कश्ती-ए-मय को नहीं लंगर की चाह
Rahat Indori
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अब के बहार-ए-हुस्न-ए-बुताँ है कमाल पर
कलकत्ता को डाक में चला हूँ जो मैं आह
दिल ले के पलकें फिर गईं ज़ुल्फ़ों की आड़ में
नाज़ुक ऐसा नहीं किसी का पेट
तस्वीर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़-ए-गुलफ़ाम ले गया
आमद तसव्वुर-ए-बुत-ए-बेदाद-गर की है
क्या मज़ा पर्दा-ए-वहदत में है खुलता नहीं हाल
ज़ख़्मी न भूल जाएँ मज़े दिल की टीस के
शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
ज़िंदा-ए-जावेद हैं मारा जिन्हें उस शोख़ ने
उम्र बाक़ी राह-ए-जानाँ में बसर होने को है
दौलत के दाँत कुंद किए मेरे हिर्स ने