कोठे पे चेहरा-ए-पुर-नूर दिखाया सर-ए-शाम
यार से रजअत-ए-ख़ुर्शीद का एजाज़ हुआ
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एहसान नहीं ख़्वाब में आए जो मिरे पास
असर कर के आह-ए-रसा फिर गई
का'बे से मुझ को लाई सवाद-ए-कुनिश्त में
जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
है ईद लाओ मय-ए-लाला-फ़ाम उठ उठ कर
याद उस बुत की नमाज़ों में जो आई मुझ को
फोड़े ने सफ़र में सख़्त घबराया है
नमाज़ शुक्र की पढ़ता है जाम तोड़ के शैख़
अशआ'र मेरे सुन के वो ख़ामोश हो गया
आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
गर्मी-ए-हुस्न की मिदहत का सिला लेते हैं
कलकत्ता को डाक में चला हूँ जो मैं आह