खाते हैं अंगूर पीते हैं शराब
बस यही मस्तों का आब-ओ-दाना है
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(400) Peoples Rate This
रोज़ दिलहा-ए-मै-कशाँ टूटे
रिंदों को पाबंदी-ए-दुनिया कहाँ
नशे में सहवन कर ली तौबा
हुज़ूर-ए-दुख़्तर-ए-रज़ हाथ पाँव काँपते हैं
तेरे हाथों से मिटेगा नक़्श-ए-हस्ती एक दिन
कब पान रक़ीबों को इनायत नहीं होते
अपने आक़ा की हर घड़ी याद में हूँ
पड़ गई जान जो उस तिफ़्ल ने पत्थर मारे
क़ैदी हूँ सर-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर से पहले
बुतों के घर की तरफ़ काबे के सफ़र से फिरे
बोसे हैं बे-हिसाब हर दिन के
वहाँ पहुँच नहीं सकतीं तुम्हारी ज़ुल्फ़ें भी