दस बीस हर महीने में अबरू नज़र पड़े
इस साल सारे चाँद हुए तीस तीस के
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
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हाथ मलवाती हैं हूरों को तुम्हारी चूड़ियाँ
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
अबरू की तेरी ज़र्ब-ए-दो-दस्ती चली गई
लेटे जो साथ हाथ लगा बोसा-ए-दहन
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए
हो गया हूँ मैं नक़ाब-ए-रू-ए-रौशन पर फ़क़ीर
दिल ले के पलकें फिर गईं ज़ुल्फ़ों की आड़ में
सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने
दुनिया से दाग़-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम ले गया
करते हैं मस्जिदों में शिकवा-ए-मस्ताँ ज़ाहिद
वहाँ पहुँच नहीं सकतीं तुम्हारी ज़ुल्फ़ें भी