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ख़ूबान-ए-फुसूँ-गर से हम उलझा नहीं करते - मुनीर शिकोहाबादी कविता - Darsaal

ख़ूबान-ए-फुसूँ-गर से हम उलझा नहीं करते

ख़ूबान-ए-फुसूँ-गर से हम उलझा नहीं करते

जादू-गरों की ज़ुल्फ़ में लटका नहीं करते

डरते हैं कि नालों से क़यामत न मचा दूँ

इस ख़ौफ़ से वो वादा-ए-फ़र्दा नहीं करते

बर्बाद हैं लेकिन नहीं यारों से मुकद्दर

गो ख़ाक हैं पर दिल कभी मैला नहीं करते

इक़रार-ए-शिफ़ा करते हैं पर रखते हैं बीमार

अच्छा जो वो कहते हैं कुछ अच्छा नहीं करते

सूरज हैं कभी चाँद कभी शम्अ कभी फूल

किस रोज़ नए रूप वो बदला नहीं करते

दिल से हूँ 'मुनीर' अपने मैं उस्ताद का आशिक़

तौक़ीर ओ रिआयत मिरी क्या क्या नहीं करते

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In Hindi By Famous Poet Muneer Shikohabadi. is written by Muneer Shikohabadi. Complete Poem in Hindi by Muneer Shikohabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.