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जलसों में गुज़रने लगी फिर रात तुम्हारी - मुनीर शिकोहाबादी कविता - Darsaal

जलसों में गुज़रने लगी फिर रात तुम्हारी

जलसों में गुज़रने लगी फिर रात तुम्हारी

इस भीड़ में जाती न रहे बात तुम्हारी

है जल्वा-गर-ए-दैर-ओ-हरम ज़ात तुम्हारी

ठहरी है दो अमला में मुलाक़ात तुम्हारी

जल्वा सिफ़त-ए-शम्अ' है गर्दन से कमर तक

किस नूर के साँचे में ढली गात तुम्हारी

खोले हुए गेसू न दिखाए मुझे सूरत

मेहमान मिरे घर न हुए रात तुम्हारी

पच्चीसी बहुत खेलती हो ग़ैर से ऐ जाँ

कौड़ी की न हो जाए कहीं बात तुम्हारी

आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़

तस्बीह पढ़ा करते हैं दिन रात तुम्हारी

कटवा के मिरे दस्त-ए-तमन्ना को वो बोले

दो हाथ घटी आज मुलाक़ात तुम्हारी

फ़रमाते हैं हँस हँस के मुझे देख के गिर्यां

ले डूबेगी आख़िर तुम्हें बरसात तुम्हारी

मस्ती जो लगा कर मुझे बातों में उड़ाओ

उड़ जाए धुआँ बन के ये ज़ुल्मात तुम्हारी

पामालों की आँखों में सुबुक मुझ को न करना

डरता हूँ कि हल्की न पड़े बात तुम्हारी

कहते हैं तग़ाफ़ुल से मुझे ज़हर खिला कर

इन रोज़ों बहुत तल्ख़ है औक़ात तुम्हारी

जो कुछ कहो बर-अक्स कोई कह नहीं सकता

क्या ताब है उल्टे जो कोई बात तुम्हारी

कहता हूँ कि बोसा भी मिला जान भी पाई

वअ'दा न करो ख़ैर इनायात तुम्हारी

आँखों में भी सीने में भी दिल में भी तुम्हीं हो

किस पर्दे में पोशीदा नहीं ज़ात तुम्हारी

हूरों में हुआ करती हैं तक़रीर की नक़लें

डर है न बिगड़ जाए कहीं बात तुम्हारी

पहना के कफ़न ख़ाक के पर्दे में छुपाया

दुहरे दिए ख़िलअ'त ये इनायात तुम्हारी

होंटों से जो फिर जाती है मुँह की तरफ़ ऐ जान

क्या नश्शे में बहकी हुई है बात तुम्हारी

की क़त्अ अबस ज़ुल्फ़ न था कोई गिरफ़्तार

तन्हा रहे बे-लुत्फ़ कटी रात तुम्हारी

बद-गो हो ये अफ़्साना रहे अहल-ए-जहाँ में

क़िस्सा हो बिगड़ जाए अगर बात तुम्हारी

ज़ख़्म एक कटारी का इनायत नहीं होता

कौड़ी कोई मिलती नहीं ख़ैरात तुम्हारी

उलझा है मगर ज़ुल्फ़ में तक़रीर का लच्छा

सुलझी हुई हम ने न सुनी बात तुम्हारी

अल्लाह रे सफ़ा मुँह नज़र आता है बदन में

आईना है ऐ जान करामात तुम्हारी

फ़रमाइशों का बोझ रक़ीबों से न उट्ठा

सद शुक्र कि हल्की न हुई बात तुम्हारी

शीरीं से न हो दिल कहीं फ़रहाद का खट्टा

डरता हूँ कि शीरीं है बहुत बात तुम्हारी

क्या शेर मज़ेदार 'मुनीर' आज पढ़े हैं

हर बात में एजाज़ है क्या बात तुम्हारी

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In Hindi By Famous Poet Muneer Shikohabadi. is written by Muneer Shikohabadi. Complete Poem in Hindi by Muneer Shikohabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.