रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं
मैं उस घड़ी वतन से कई मील दूर था
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साअत-ए-हिज्राँ है अब कैसे जहानों में रहूँ
शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ
मिलन की रात
हुस्न में गुनाह की ख़्वाहिश
इतने ख़ामोश भी रहा न करो
सुन बस्तियों का हाल जो हद से गुज़र गईं
ख़याल-ए-यकता में ख़्वाब इतने
हक़ीक़त
अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
हमेशा देर कर देता हूँ
और हैं कितनी मंज़िलें बाक़ी
इक और दरिया का सामना था 'मुनीर' मुझ को