मोहब्बत अब नहीं होगी ये कुछ दिन ब'अद में होगी
गुज़र जाएँगे जब ये दिन ये उन की याद में होगी
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दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़
कल्पना
मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया
रहता है इक हर उस सा क़दमों के साथ साथ
जादूगर
मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं
क़बा-ए-ज़र्द पहन कर वो बज़्म में आया
आ गई याद शाम ढलते ही
बे-हक़ीक़त दूरियों की दास्ताँ होती गई
जादू का खेल
वो खड़ा है एक बाब-ए-इल्म की दहलीज़ पर
रौशनी दर रौशनी है उस तरफ़