मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया
उम्र मेरी थी मगर उस को बसर उस ने किया
Gulzar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(341) Peoples Rate This
शब-ए-विसाल में दूरी का ख़्वाब क्यूँ आया
साए
आदत ही बना ली है तुम ने तो 'मुनीर' अपनी
वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में 'मुनीर'
मिसाल-ए-संग खड़ा है उसी हसीं की तरह
जब भी घर की छत पर जाएँ नाज़ दिखाने आ जाते हैं
वतन में वापसी
तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई
शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिर्यां रही
इक आलम-ए-हिज्राँ ही अब हम को पसंद आया
ये आँख क्यूँ है ये हाथ क्या है
थकन से राह में चलना मुहाल भी है मुझे