इक तेज़ रा'द जैसी सदा हर मकान में
लोगों को उन के घर में डरा देना चाहिए
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Gulzar
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ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे
जादूगर
गुज़रगाह पर तमाशा
कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी 'मुनीर'
बेबसी
दिल जल रहा था ग़म से मगर नग़्मा-गर रहा
अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक
क्यूँ 'मुनीर' अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
रहता है इक हर उस सा क़दमों के साथ साथ
वहम ये तुझ को अजब है ऐ जमाल-ए-कम-नुमा