दिन भर जो सूरज के डर से गलियों में छुप रहते हैं
शाम आते ही आँखों में वो रंग पुराने आ जाते हैं
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रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर
जादू का खेल
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे
चाँद चढ़ता देखना बेहद समुंदर पर 'मुनीर'
वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया
थी जिस की जुस्तुजू वो हक़ीक़त नहीं मिली
शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ
दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र
जादूगर
हैं रवाँ उस राह पर जिस की कोई मंज़िल न हो
जब भी घर की छत पर जाएँ नाज़ दिखाने आ जाते हैं