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शब-ख़ूँ - मुनीर नियाज़ी कविता - Darsaal

शब-ख़ूँ

जब बन सियाह रात के तारों से भर गए

कुंज-ए-चमन में चमके शगूफ़े नए नए

मुझ को हवा ने बात सुझाई अजीब सी

बादल में एक शक्ल दिखाई अजीब सी

चाँद आसमाँ की सेज पे सोया हुआ मिला

रंग-ए-गुल-ए-अनार में लुथड़ा हुआ मिला

ऐ आशिक़ान-ए-हुस्न-ए-अज़ल ग़ौर से सुनो

मैं बर्ग-ए-बे-नवा तो नहीं हूँ कि चुप रहूँ

दिल के किसी भी शोले को उर्यां न कर सकूँ

मैं तेग़ हाथ में लिए सू-ए-फ़लक गया

जज़्बों के रस से महके हुए चाँद तक गया

काफ़ी था एक वार मिरी तेग़-ए-तेज़ का

महताब के बदन से लहू फूट कर बहा

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In Hindi By Famous Poet Muneer Niyazi. is written by Muneer Niyazi. Complete Poem in Hindi by Muneer Niyazi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.