पहली बात ही आख़िरी थी
इस से आगे बढ़ी नहीं
डरी हुई कोई बेल थी जैसे
पूरे घर पे चढ़ी नहीं
डर ही क्या था कह देने में
खुल कर बात जो दिल में थी
आस-पास कोई और नहीं था
शाम थी नई मोहब्बत की
एक झिजक सी साथ रही क्यूँ
क़ुर्ब की साअत-ए-हैराँ में
हद से आगे बढ़ने की
फैल के उस तक जाने की
उस के घर पर चढ़ने की