मौत
हर तरफ़ ख़ामोश गलियाँ ज़र्द-रू गूँगे मकीं
सूने सूने बाम-ओ-दर और उजड़े उजड़े शह-नशीं
मुमटियों पर एक गहरी ख़ामुशी साया-फ़गन
रेंग कर चलती हवा की भी सदा आती नहीं
इस सुकूत-ए-बेकराँ में इक तिलिस्मी नाज़नीं
सुर्ख़ गहरे सुर्ख़ लब और चाँद सी पीली जबीं
आँख के मुबहम इशारे से बुलाती है मुझे
एक पुर-असरार इशरत का ख़ज़ाना है वो चश्म-ए-दिल-नशीं
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