रोज़-ए-अज़ल से वो भी मुझ तक आने की कोशिश में है
रोज़-ए-अज़ल से मैं भी उस से मिलने की कोशिश में हूँ
लेकिन मैं और वो हम दोनों
अपनी अपनी शक्लों जैसे लाखों गोरख धंदों में
चुप चुप और हैरान खड़े हैं
कौन है मैं
और कौन है तू
बस इस दर्द में खोए हुए हैं
सुब्ह को मिलने वाले समझें
जैसे ये तो रोए हुए हैं