फुलझड़ी सिसकी की गहरी रात में छूटी नहीं
जू-ए-ख़ूँ कोह-ए-सियह की आँख से फूटी नहीं
खेमा-ए-ग़म की तनाब-ए-रेशमीं टूटी नहीं
तीरगी के राहज़न ने दुख़्त-ए-रज़ लूटी नहीं
कश्ती-ए-दिल बहर-ए-ग़म की मौज में खेते रहो
अपने ही ख़ूँ के चराग़ाँ के मज़े लेते रहो
उम्र-भर शब के अँधेरे को सदा देते रहो