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Muneer Niyazi Poetry In Hindi - Best Muneer Niyazi Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Page 2 - Darsaal

मुनीर नियाज़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनीर नियाज़ी (page 2)

मुनीर नियाज़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनीर नियाज़ी (page 2)
नाममुनीर नियाज़ी
अंग्रेज़ी नामMuneer Niyazi
जन्म की तारीख1923
मौत की तिथि2006
जन्म स्थानLahore

शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ

शहर की गलियों में गहरी तीरगी गिर्यां रही

शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास

रोया था कौन कौन मुझे कुछ ख़बर नहीं

रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर

रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी

क़बा-ए-ज़र्द पहन कर वो बज़्म में आया

पूछते हैं कि क्या हुआ दिल को

नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था

'मुनीर' इस मुल्क पर आसेब का साया है या क्या है

'मुनीर' इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को

'मुनीर' अच्छा नहीं लगता ये तेरा

मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर'

मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर'

मोहब्बत अब नहीं होगी ये कुछ दिन ब'अद में होगी

मिलती नहीं पनाह हमें जिस ज़मीन पर

मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया

मिरे पास ऐसा तिलिस्म है जो कई ज़मानों का इस्म है

मकान-ए-ज़र लब-ए-गोया हद-ए-सिपेह्र-ओ-ज़मीं

मकाँ है क़ब्र जिसे लोग ख़ुद बनाते हैं

मैं उस को देख के चुप था उसी की शादी में

मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ

मैं ख़ुश नहीं हूँ बहुत दूर उस से होने पर

मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये

मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बाद

महक अजब सी हो गई पड़े पड़े संदूक़ में

लिए फिरा जो मुझे दर-ब-दर ज़माने में

लाई है अब उड़ा के गए मौसमों की बास

क्यूँ 'मुनीर' अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा

कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए

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