मुनीर नियाज़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनीर नियाज़ी
नाम | मुनीर नियाज़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Muneer Niyazi |
जन्म की तारीख | 1923 |
मौत की तिथि | 2006 |
जन्म स्थान | Lahore |
मोहब्बत अब नहीं होगी
हर्फ़ सादा-ओ-रंगीं
अपने शहर के लिए दुआ
दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ
ज़िंदा रहें तो क्या है जो मर जाएँ हम तो क्या
ज़िंदा लोगों की बूद-ओ-बाश में हैं
ज़वाल-ए-अस्र है कूफ़े में और गदागर हैं
ज़मीं के गिर्द भी पानी ज़मीं की तह में भी
ये सफ़र मालूम का मा'लूम तक है ऐ 'मुनीर'
ये नमाज़-ए-अस्र का वक़्त है
ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक
ये कैसा नश्शा है मैं किस अजब ख़ुमार में हूँ
ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगाँ की याद
वो खड़ा है एक बाब-ए-इल्म की दहलीज़ पर
वो जो मेरे पास से हो कर किसी के घर गया
वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन
वक़्त किस तेज़ी से गुज़रा रोज़-मर्रा में 'मुनीर'
वहम ये तुझ को अजब है ऐ जमाल-ए-कम-नुमा
उठा तू जा भी चुका था अजीब मेहमाँ था
उस को भी तो जा कर देखो उस का हाल भी मुझ सा है
उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए
तुम मेरे लिए इतने परेशान से क्यूँ हो
तू भी जैसे बदल सा जाता है
थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ
था 'मुनीर' आग़ाज़ ही से रास्ता अपना ग़लत
तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई
तन्हा उजाड़ बुर्जों में फिरता है तू 'मुनीर'
सुन बस्तियों का हाल जो हद से गुज़र गईं
सुब्ह-ए-काज़िब की हवा में दर्द था कितना 'मुनीर'
शायद कोई देखने वाला हो जाए हैरान