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डूबता दर्द का सूरज तिरे इज़हार में था - मुनीर फ़ातमी कविता - Darsaal

डूबता दर्द का सूरज तिरे इज़हार में था

डूबता दर्द का सूरज तिरे इज़हार में था

ढूँडने वाला तुझे ज़ात के अम्बार में था

आज तन्हा हूँ मैं इख़्लास के उस जंगल में

ऐसे आहू की तरह हो कि कभी डार में था

तेशा-ए-याद में अब खोद रहा हूँ उस को

जो कभी दफ़न मिरे ज़ेहन की दीवार में था

दोपहर उम्र की साए में मिरी जिस के ढली

वो घना पेड़ भी इस शहर के अश्जार में था

यूँ तो सब लोग थे इस शोर शराबे में मगन

कोई अपना न मगर इस भरे बाज़ार में था

आज तुम साहब-ए-इज़्ज़त हो तो इंकार नहीं

नाम मेरा भी कभी सुर्ख़ी-ए-अख़बार में था

सोचता हूँ तो लरज़ उठता है एहसास-ए-अना

दायरा बन के भी मैं वक़्त की पुरकार में था

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In Hindi By Famous Poet Muneer Fatmi. is written by Muneer Fatmi. Complete Poem in Hindi by Muneer Fatmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.