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ये भी इसरार कोई रौज़न-ए-दर बाज़ न हो - मुनीर अहमद देहलवी कविता - Darsaal

ये भी इसरार कोई रौज़न-ए-दर बाज़ न हो

ये भी इसरार कोई रौज़न-ए-दर बाज़ न हो

साँस लेते रहो पर साँस की आवाज़ न हो

यक-ब-यक आलम-ए-इज़हार में सन्नाटे की गूँज

आने वाले किसी तूफ़ान की ग़म्माज़ न हो

शेर-ओ-फ़न आज़र-ए-हाज़िर के तराशीदा सनम

तोहमत-ए-लौह-ओ-क़लम तौसन-ए-पर्वाज़ न हो

फिर तिरी याद से रौशन हुआ काशना-ए-दिल

वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ जल्वा-गह-ए-नाज़ न हो

वक़्त के जब्र से कब कार-ए-जुनूँ-ख़ेज़ रुका

कोशिश-ए-संग-ज़नी नुक़्ता-ए-आग़ाज़ न हो

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In Hindi By Famous Poet Muneer Ahmad Muneer Dehlvi. is written by Muneer Ahmad Muneer Dehlvi. Complete Poem in Hindi by Muneer Ahmad Muneer Dehlvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.