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लफ़्ज़ की तह से ये मफ़्हूम तलक जाती है - मुनीर अहमद जामी कविता - Darsaal

लफ़्ज़ की तह से ये मफ़्हूम तलक जाती है

लफ़्ज़ की तह से ये मफ़्हूम तलक जाती है

फ़िक्र की आग है तहरीर का दम खाती है

कुछ न कहते हुए रखता है असर कहने का

इन हवाओं का लब-ओ-लहजा तिलस्माती है

मुझ को लाई है कई बार तिरे कूचे तक

ख़्वाब-ज़ारों से जो इक राह गुज़र जाती है

ख़ुद को आईना बना रक्खा है जब से में ने

ज़िंदगी सामने आते हुए शरमाती है

रंग लाई मिरी आँखों की जलन ऐ 'जामी'

कूचा-ए-शब से उजालों की हवा आती है

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In Hindi By Famous Poet Muneer Ahmad Jami. is written by Muneer Ahmad Jami. Complete Poem in Hindi by Muneer Ahmad Jami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.