हनूत चेहरे
शहर-ए-दिल के ख़ामोश गली-कूचों में
दुखों के क़ाफ़िले आ कर ठहरे हैं
हद्द-ए-नज़र उदासी की धूप फैली है
वफ़ा के ठुकराए
सितम-परवर चेहरों की भीड़ में
मोहब्बत की दर-बदरी का फ़ैसला हुआ है
नफ़रतों में डूबे कुछ चेहरे मिल के
एक ख़ुश-रंग मंज़र को
वीरानियों के दश्त में दफ़्न करते हैं
सफ़ेद परिंदों की आँखों में
अश्कों का समुंदर उंडेल कर
उन्हें तन्हाइयों के ज़िंदाँ में क़ैद करते हैं
और सितम-गज़ीदा लम्हों की बक़ा की ख़ातिर
सितमगरी के नए सिलसिलों का अहद करते हैं
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