याद
दयार-ए-ग़ैर में सुब्ह-ए-वतन की याद आई
नसीम-ए-आबला-पा को चमन की याद आई
जराहतों ने किया एहतिमाम-ए-लाला-ओ-गुल
बहार-ए-रफ़्ता को सर्व-ओ-समन की याद आई
गुज़र रहे थे शब-ओ-रोज़ कुंज-ए-उज़्लत में
कि शम्अ' बन के तिरी अंजुमन की याद आई
बुझी हुई थी बहुत दिन से आरज़ू-ए-सुख़न
ये आज किस बुत-ए-शीरीं-दहन की याद आई
(464) Peoples Rate This