अब आप की मर्ज़ी है सँभालें न सँभालें
ख़ुशबू की तरह आप के रूमाल में हम हैं
Rahat Indori
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Javed Akhtar
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मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
फेंकी न 'मुनव्वर' ने बुज़ुर्गों की निशानी
सहरा पे बुरा वक़्त मिरे यार पड़ा है
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
हम कुछ ऐसे तिरे दीदार में खो जाते हैं
किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
देखना है तुझे सहरा तो परेशाँ क्यूँ है
दोहरा रहा हूँ बात पुरानी कही हुई
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर