उस की हर बात
हर इशारे
हर किनाए को मैं आसानी से
समझ लेता था
लेकिन पता नहीं क्यूँ उस ने
मेरे लिखे हुए पुराने ख़ुतूत में
सोए हुए बे-क़ुसूर लफ़्ज़ों को
अपनी लाल रंग की लिपस्टिक से
हरा करने की कोशिश की है
क्यूँ
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मुझ को गहराई में मिट्टी की उतर जाना है
महफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न हो
मोहब्बत एक पाकीज़ा अमल है इस लिए शायद
सहरा-पसंद हो के सिमटने लगा हूँ मैं
दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
फेंकी न 'मुनव्वर' ने बुज़ुर्गों की निशानी
अच्छा हुआ कि मेरा नशा भी उतर गया
पत्थर के होंट
काले कपड़े नहीं पहने हैं तो इतना कर ले
ऐसा लगता है कि कर देगा अब आज़ाद मुझे
आते हैं जैसे जैसे बिछड़ने के दिन क़रीब
ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं