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सहरा पे बुरा वक़्त मिरे यार पड़ा है - मुनव्वर राना कविता - Darsaal

सहरा पे बुरा वक़्त मिरे यार पड़ा है

सहरा पे बुरा वक़्त मिरे यार पड़ा है

दीवाना कई रोज़ से बीमार पड़ा है

सब रौनक़-ए-सहरा थी इसी पगले के दम से

उजड़ा हुआ दीवाने का दरबार पड़ा है

आँखों से टपकती है वही वहशत-ए-सहरा

काँधे भी बताते हैं बड़ा बार पड़ा है

दिल में जो लहू-झील थी वो सूख चुकी है

आँखों का दो-आबा है सो बे-कार पड़ा है

तुम कहते थे दिन हो गए देखा नहीं उस को

लो देख लो ये आज का अख़बार पड़ा है

ओढ़े हुए उम्मीद की इक मैली सी चादर

दरवाज़ा-ए-बख़्शिश पे गुनहगार पड़ा है

ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ

महँगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है

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In Hindi By Famous Poet Munawwar Rana. is written by Munawwar Rana. Complete Poem in Hindi by Munawwar Rana. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.