महफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न हो
महफ़िल में आज मर्सिया-ख़्वानी ही क्यूँ न हो
आँखों से बहने दीजिए पानी ही क्यूँ न हो
नश्शे का एहतिमाम से रिश्ता नहीं कोई
पैग़ाम उस का आए ज़बानी ही क्यूँ न हो
ऐसे ये ग़म की रात गुज़रना मुहाल है
कुछ भी सुना मुझे वो कहानी ही क्यूँ न हो
कोई भी साथ देता नहीं उम्र-भर यहाँ
कुछ दिन रहेगी साथ जवानी ही क्यूँ न हो
इस तिश्नगी की क़ैद से जैसे भी हो निकाल
पीने को कुछ भी चाहिए पानी ही क्यूँ न हो
दुनिया भी जैसे ताश के पत्तों का खेल है
जोकर के साथ रहती है रानी ही क्यूँ न हो
तस्वीर उस की चाहिए हर हाल में मुझे
पागल हो सर-फिरी हो दिवानी ही क्यूँ न हो
सोना तो यार सोना है चाहे जहाँ रहे
बीवी है फिर भी बीवी पुरानी ही क्यूँ न हो
अब अपने घर में रहने न देंगे किसी को हम
दिल से निकाल देंगे निशानी ही क्यूँ न हो
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