जाम लेते हैं न पीने को सुबू लेते हैं
जाम लेते हैं न पीने को सुबू लेते हैं
हम मगर सरहद-ए-इदराक को छू लेते हैं
मय मयस्सर जो नहीं प्यास बुझाने के लिए
हम तो चलो मैं अब अपना ही लहू लेते हैं
मेरी बेगाना-रवी मुझ को बचा लेती है
इंतिक़ाम अपनी तरफ़ से तो अदू लेते हैं
तोड़ देते हैं उसे किस लिए फिर अहल-ए-जुनूँ
माँग कर ख़ुद ही तो ज़ंजीर-ए-गुलू लेते हैं
सिर्फ़ आँखों की तसल्ली के लिए है ये सैर
रंग लेते हैं न हम फूल से बू लेते हैं
टूट जाए न किसी ज़ख़्म का टाँका ऐ दोस्त
काम हम ज़ब्त से हंगाम-ए-रफ़ू लेते हैं
किया 'मुनव्वर' अभी बालीदगी-ए-शौक़ का ज़िक्र
किस क़दर वक़्त शजर बहर-ए-नुमू लेते हैं
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