लूट कर वो आ नहीं सकता कभी सोचा नहीं
लूट कर वो आ नहीं सकता कभी सोचा नहीं
इस लिए जाते हुए मैं ने उसे रोका नहीं
हासिल-ए-एहसास है इक उम्र की तिश्ना-लबी
अब्र का टुकड़ा भी कोई शहर पर बरसा नहीं
इस तरफ़ भी इंतिहा और उस तरफ़ भी इंतिहा
वो भी कम हँसता नहीं और मैं भी कम हँसता नहीं
मेरा ज़ौक़-ए-शेर है मम्नून-ए-इख़्लास-ए-नज़र
कोई फ़न-पारा मिरा मेआर से गिरता नहीं
लफ़्ज़ का कोई सितारा सोच का जुगनू कोई
आज भी ज़ुल्मत-गह-ए-एहसास में चमका नहीं
तुझ से मेरे रब्त का इज़हार लफ़्ज़ों में कहाँ
मैं ने अपने आप को भी इस क़दर चाहा नहीं
रौशनी ले कर 'मुनव्वर' मैं गया किस किस के घर
ग़ैर हो या कोई अपना ये कभी देखा नहीं
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