जब ज़माने में फ़क़त अफ़्सुर्दगी रह जाएगी
जब ज़माने में फ़क़त अफ़्सुर्दगी रह जाएगी
मेरी आँखों में किरन उम्मीद की रह जाएगी
सुब्ह-दम आ जाएगा उस का पयाम-ए-माज़रत
जिस की ख़ातिर आँख शब भर जागती रह जाएगी
खिल रहे हैं सोच के सहरा में यादों के गुलाब
तू न होगा तो यहाँ ख़ुशबू तिरी रह जाएगी
वक़्त की सरकश हवाओ! जब दिया बुझ जाएगा
सुब्ह की सूरत में उस की रौशनी रह जाएगी
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