चश्म-ए-आहू और है इस की कहानी और है
चश्म-ए-आहू और है इस की कहानी और है
जिस में मैं रहता हूँ चश्म-ए-आस्मानी और है
जिस में तू शामिल था वो कुछ और था तर्ज़-ए-हयात
अब जो गुज़रे जा रही है ज़िंदगानी और है
घर के अंदर जो हुआ वो वाक़िआ' कुछ और था
उस ने जो सब को सुनाई वो कहानी और है
आतिश-ए-ग़म ख़ाना-ए-दिल में बुझाने के लिए
और रो लूँगा अभी आँखों में पानी और है
तैरने से डूबना ख़ुश-तर है दिल की नाव का
ग़म का दरिया और है इस की रवानी और है
इक ग़ज़ल सुन कर 'मुनव्वर' वो बहुत नाराज़ है
इक मनाने के लिए उस को सुनानी और है
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