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चाँद की रानाइयों में राज़ ये मस्तूर है - मुनव्वर हाशमी कविता - Darsaal

चाँद की रानाइयों में राज़ ये मस्तूर है

चाँद की रानाइयों में राज़ ये मस्तूर है

ख़ूबसूरत है वही जो दस्तरस से दूर है

अपनी सोचों के मुताबिक़ कुछ भी कर सकता नहीं

आदमी हालात के हाथों बहुत मजबूर है

ख़ाना-ए-दिल में तुम अपने झाँक कर देखो ज़रा

मेरे इख़्लास-ओ-मोहब्बत का वहाँ भी नूर है

हुस्न की तख़्लीक़ में मसरूफ़ है रब्ब-ए-जहाँ

और शाइ'र हुस्न की तारीफ़ पर मामूर है

ये हमारे हक़ में अच्छा हो बुरा हो कुछ भी हो

हम ने करना है वही जो आप को मंज़ूर है

वो सरापा हुस्न है और मैं सरापा इश्क़ हूँ

साज़ से दिल उस का मेरा सोज़ से मा'मूर है

मुझ को है मंज़ूर जब्र-ए-हिज्र भी उस के लिए

मुझ से रह कर दूर भी कोई अगर मसरूर है

आदमी कम-गो है और घर से निकलता भी नहीं

शहर में फिर भी 'मुनव्वर' किस क़दर मशहूर है

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In Hindi By Famous Poet Munawwar Hashmi. is written by Munawwar Hashmi. Complete Poem in Hindi by Munawwar Hashmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.