Ghazals of Munawwar Hashmi
नाम | मुनव्वर हाशमी |
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अंग्रेज़ी नाम | Munawwar Hashmi |
सर उठाएगी अगर रस्म-ए-जफ़ा मेरे बा'द
सब की आवाज़ में आवाज़ मिला रक्खी है
रोज़ गिरे इक ख़्वाब-ए-इमारत मलबे में दब जाऊँ
मेहनत कोशिश और वफ़ा के ख़ूगर ज़िंदा रहते हैं
लूट कर वो आ नहीं सकता कभी सोचा नहीं
कुछ इस तरह से बसर की है ज़िंदगी मैं ने
ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया से हम गुज़र भी गए
जहाँ बचपन गुज़ारा था वो घर पहचानते हैं
जब ज़माने में फ़क़त अफ़्सुर्दगी रह जाएगी
इश्क़ का ए'तिबार हैं हम लोग
हम अपनी जागती आँखों में ख़्वाब ले के चले
हमारे हक़ में कोई इंक़लाब है कि नहीं
एक ही मसअला ता-उम्र मिरा हल न हुआ
इक ऐसा मोड़ सर-ए-रहगुज़र भी आएगा
दिल में तेरे ख़याल की ख़ुश्बू
चश्म-ए-आहू और है इस की कहानी और है
चाँद की रानाइयों में राज़ ये मस्तूर है
और कोई भी नहीं अपना सहारा बाक़ी
अगरचे मौत को हम ने गले लगाया नहीं