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देर तक इक साया-ए-अब्र गुमाँ देखा हुआ - मुनव्वर अज़ीज़ कविता - Darsaal

देर तक इक साया-ए-अब्र गुमाँ देखा हुआ

देर तक इक साया-ए-अब्र गुमाँ देखा हुआ

आग बनता जा रहा है साएबाँ देखा हुआ

फिर इसी शिद्दत की टीसें हैं दिल-ए-कज-फ़हम में

फिर वही है मजमा-ए-चारा-गराँ देखा हुआ

देखता रहता हूँ शक्लें सोचता रहता हूँ नाम

ढूँढता फिरता हूँ अक्स-ए-ना-गहाँ देखा हुआ

राज़ है कोई जो मुझ पर मुन्कशिफ़ होने को है

किस लिए लगता है अन-देखा जहाँ देखा हुआ

क्या कहूँ किस कैफ़ में गुम है मिरी चश्म-ए-ख़याल

हर कोई महसूस होता है यहाँ देखा हुआ

झूट ठहरा है 'मुनव्वर' उन रुतों के दरमियाँ

ख़्वाब-ए-इम्कान-ए-नुमू पैवंद-ए-जाँ देखा हुआ

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In Hindi By Famous Poet Munawwar Aziz. is written by Munawwar Aziz. Complete Poem in Hindi by Munawwar Aziz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.