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अभी रुत को बदलते देखना है - मुनव्वर अज़ीज़ कविता - Darsaal

अभी रुत को बदलते देखना है

अभी रुत को बदलते देखना है

भरी शाख़ों को जलते देखना है

तिरी बख़्शी हुई ख़िलअत पहन कर

मुझे हर जब्र पलते देखना है

चिराग़-ए-दर्द ताक़-ए-जाँ पे रख कर

हवाओं को मचलते देखना है

ज़रा इक लम्स की हिद्दत अता हो

अगर पत्थर पिघलते देखना है

पहाड़ी से परे उन घाटियों में

कोई चश्मा उबलते देखना है

बड़ी मासूम ख़्वाहिश है 'मुनव्वर'

कभी सूरज निकलते देखना है

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In Hindi By Famous Poet Munawwar Aziz. is written by Munawwar Aziz. Complete Poem in Hindi by Munawwar Aziz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.