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मिरे नालों में इतना तो असर है - मुमताज़ मीरज़ा कविता - Darsaal

मिरे नालों में इतना तो असर है

मिरे नालों में इतना तो असर है

शब-ए-ग़म है मगर कुछ मुख़्तसर है

उम्मीदें लाए थे ग़म ले के उठे

ये रूदाद-ए-हयात-ए-मुख़्तसर है

नहीं है दूर कुछ मंज़िल हमारी

ज़माना राह में हाइल मगर है

असीरों को रिहाई मिल तो जाए

मगर शर्त-ए-शिकस्त-ए-बाल-ओ-पर है

वो राहें जिन को सूना कर गए वो

उन्हीं पर आज तक मेरी नज़र है

जहाँ तुम हो वहाँ हैं लाला ओ गुल

जहाँ हम हैं वहाँ बर्क़-ओ-शरर है

बदल डाला है जिस ने मेरा आलम

किसी की इक निगाह-ए-मुख़्तसर है

इलाही ख़ैर मेरे आशियाँ की

सबा के साथ फिर मौज-ए-शरर है

मह ओ ख़ुर्शीद को समझा है मंज़िल

ख़ुदाया किस क़दर आजिज़ बशर है

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In Hindi By Famous Poet Mumtaz Mirza. is written by Mumtaz Mirza. Complete Poem in Hindi by Mumtaz Mirza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.