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हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं - मुमताज़ मीरज़ा कविता - Darsaal

हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं

हाल न पूछो रोज़-ओ-शब का कोई अनोखी बात नहीं

दिन को कैसे रात कहें हम रात भी अब तो रात नहीं

लगने को तो सेहन-ए-चमन में दोनों अच्छे लगते हैं

काँटों में जो अपना-पन है फूलों में वो बात नहीं

दिल से भुला तो दें हम उन को लेकिन इस को क्या कीजे

सदियों की रूदाद भुलाना अपने बस की बात नहीं

गुलशन गुलशन शाख़ ओ शजर पर रोज़ नशेमन जलते हैं

किस ने कहा था मौसम बदला अगले से हालात नहीं

एक ज़रा सी बात पे क्यूँ है इतना हंगामा 'मुमताज़'

शीशा-ए-दिल ही तो टूटा है और तो कोई बात नहीं

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In Hindi By Famous Poet Mumtaz Mirza. is written by Mumtaz Mirza. Complete Poem in Hindi by Mumtaz Mirza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.