बे-तरह आप की यादों ने सताया है मुझे
बे-तरह आप की यादों ने सताया है मुझे
चाँदनी रातों ने आ आ के रुलाया है मुझे
आप से कोई शिकायत न ज़माने से गिला
मेरे हालात ने मजबूर बनाया है मुझे
आज फिर औज पे है अपना मुक़द्दर शायद
आज फिर आप ने नज़रों से गिराया है मुझे
अपने बेगाने हुए और ज़माना दुश्मन
बे-दिमाग़ी ने मिरी दिन ये दिखाया है मुझे
कौन से दश्त में ले आया मुझे मेरा जुनूँ
मुड़ के देखा है तो कुछ ख़ौफ़ सा आया है मुझे
फिर हुए आज बहम जाम-ए-गुल ओ नग़्मा-ए-शब
फिर मिरे माज़ी ने 'मुमताज़' बुलाया है मुझे
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