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क़लम की नोक पे रक्खूँगा इस जहान को मैं - मुमताज़ गुर्मानी कविता - Darsaal

क़लम की नोक पे रक्खूँगा इस जहान को मैं

क़लम की नोक पे रक्खूँगा इस जहान को मैं

ज़मीं लपेट के रख दूँ कि आसमान को मैं

अज़ीज़ जाँ हो जिसे मुझ से वो गुरेज़ करे

कि आज आया हुआ हूँ ख़ुद अपनी जान को मैं

है मौज मौज मुख़ालिफ़ मिरे सफ़ीने की

और उस पे खोलने वाला हूँ बादबान को मैं

फ़रेब-ए-ज़ात से बाहर निकल के देख मुझे

बता रहा हूँ ज़माने की आन-बान को मैं

हमेशा लफ़्ज़ की हुर्मत का पास रक्खा है

बड़ा अज़ीज़ हूँ लफ़्ज़ों के ख़ानदान को मैं

अगर मैं चाहूँ तो 'मुमताज़' आसमाँ में उड़ूँ

गुमाँ यक़ीन को दे दूँ यक़ीं गुमान को मैं

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In Hindi By Famous Poet Mumtaz Gurmani. is written by Mumtaz Gurmani. Complete Poem in Hindi by Mumtaz Gurmani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.