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Mumtaz Gurmani Poetry In Hindi - Best Mumtaz Gurmani Shayari, Sad Ghazals, Love Nazams, Romantic Poetry In Hindi - Darsaal

मुमताज़ गुर्मानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुमताज़ गुर्मानी

मुमताज़ गुर्मानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुमताज़ गुर्मानी
नाममुमताज़ गुर्मानी
अंग्रेज़ी नामMumtaz Gurmani

मेले में गर नज़र न आता रूप किसी मतवाली का

ये और बात शजर सर-निगूँ पड़ा हुआ था

उस की आँखों पे मान था ही नहीं

क़लम की नोक पे रक्खूँगा इस जहान को मैं

नींदों को जब ख़्वाब में जूता जाता था

मेले में गर नज़र न आता रूप किसी मतवाली का

मैं कम-सिनी के सभी खिलौनों में यूँ बिखरता जवाँ हुआ था

हुस्न फ़ानी है जवानी के फ़साने तक है

हम कहाँ अज़्मत अस्लाफ़ सँभाले हुए हैं

गुल-बदन ख़ाक-नशीनों से परे हट जाएँ

फ़सील-ए-दिल में दर किया कि राब्ता बना रहे

अपनी हर बात ज़माने से छुपानी पड़ी थी

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