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तुम से जब बिछड़े तो कितने राब्ते रक्खे गए - मुमताज़ अतहर कविता - Darsaal

तुम से जब बिछड़े तो कितने राब्ते रक्खे गए

तुम से जब बिछड़े तो कितने राब्ते रक्खे गए

आहटों पर कान पलकों पर दिए रक्खे गए

कश्ती-ए-जाँ दर्द की लहरों में सरगर्दां रही

धड़कनों के साथ अन-मिट वसवसे रक्खे गए

अपनी ख़ातिर ख़्वाब वो रक्खे जो बे-ताबीर थे

जागते लम्हे तुम्हारे वास्ते रक्खे गए

अक्स रखता था न अपनी ज़ात में अपना कोई

कितने चेहरे आईनों के सामने रक्खे गए

क्या मसाफ़त की थकन से आश्नाई का फ़रेब

लौट आने के लिए जब रास्ते रक्खे गए

उस की आँखों को दिए मंज़र सितारों के मगर

मेरी बीनाई की ख़ातिर आबले रक्खे गए

क्या ख़बर थी एक झोंका ले अड़ेगा आशियाँ

जोड़ कर तिनके तो 'अतहर' आस के रक्खे गए

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In Hindi By Famous Poet Mumtaz Athar. is written by Mumtaz Athar. Complete Poem in Hindi by Mumtaz Athar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.