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मुझे शक्ल दे के तमाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर - मुमताज़ अतहर कविता - Darsaal

मुझे शक्ल दे के तमाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

मुझे शक्ल दे के तमाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

कभी कू-ब-कू मुझे आम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

किसी सुब्ह मुझ को वजूद दे मिरे रू-ब-रू

किसी शाम मुझ से कलाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

मुझे आँच दे किसी दोपहर के फ़राग़ में

किसी रात मुझ में क़याम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

मुझे छू के लम्स-शनास कर किसी सह-पहर

मिरी रूह तक में ख़िराम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

कभी पूरा दिन इसी ख़ाक पर मिरे साथ रह

इसी कुंज में कोई शाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

कभी शब ढले कोई शक्ल मेरी ख़बर को दे

ग़म-ए-बे-जहत को मक़ाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

मैं जो एक ज़र्रा-ए-रेग हूँ तह-ए-रेग हूँ

कभी मुझ को महर-ए-तमाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

मुझे दाएरों के हुजूम में कहीं भेज दे

मिरी वुसअतों को दवाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

कभी ले के आ मिरी ख़ाक नील-ओ-फ़ुरात से

कोई वाक़िआ मिरे नाम कर कफ़-ए-कूज़ा-गर

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In Hindi By Famous Poet Mumtaz Athar. is written by Mumtaz Athar. Complete Poem in Hindi by Mumtaz Athar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.