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कहीं भी शहर में कुंज-ए-अमाँ नहीं मिलता - मुमताज़ अतहर कविता - Darsaal

कहीं भी शहर में कुंज-ए-अमाँ नहीं मिलता

कहीं भी शहर में कुंज-ए-अमाँ नहीं मिलता

कि आज राब्ता-ए-जिस्म-ओ-जाँ नहीं मिलता

ये सोचता हूँ कहाँ से हो इब्तिदा, आख़िर

कि हर्फ़ कोई पस-ए-दास्ताँ नहीं मिलता

समय की लहर में ग़र्क़ाब हो रहा हूँ मैं

कहीं पे नाव कहीं बादबाँ नहीं मिलता

तमाम उम्र की ला-हासिली अज़ाब हुई

वो मिल गया है तो अपना निशाँ नहीं मिलता

बता रही है बगूलों की हम-रही मुझ को

पस-ए-ग़ुबार कोई कारवाँ नहीं मिलता

मिरे ख़िलाफ़ शहादत है मो'तबर सब की

मगर किसी से किसी का बयाँ नहीं मिलता

ये कैसी साअतें सर पर हैं आज-कल 'अतहर'

ज़मीं मिली है तो अब आसमाँ नहीं मिलता

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In Hindi By Famous Poet Mumtaz Athar. is written by Mumtaz Athar. Complete Poem in Hindi by Mumtaz Athar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.