किसी की याद को अपना शिआ'र कर लेंगे
किसी की याद को अपना शिआ'र कर लेंगे
फ़ज़ा-ए-दहर को हम साज़गार कर लेंगे
हम अपने ग़म को ख़ुशी में शुमार कर लेंगे
ख़िज़ाँ के दौर में जश्न-ए-बहार कर लेंगे
रसाई होगी जो इस बज़्म में कभी अपनी
नसीब वालों में अपना शुमार कर लेंगे
कभी मिलेगा जो इज़्न-ए-उबूदियत हम को
तो एक साँस में सज्दे हज़ार कर लेंगे
रहा करम जो तुम्हारा तो बहर-ए-हस्ती से
हम अपनी कश्ती-ए-उम्मीद पार कर लेंगे
तिरी तलाश में आएँगे काम दाग़-ए-जिगर
हम उन से रौशनी-ए-रह-गुज़र कर लेंगे
ख़ुशी से मिलने लगे हैं वो आज कल हम से
हम अपनी ज़ीस्त को अब ख़ुश-गवार कर लेंगे
नज़र है दर पे हमारी कि दम है आँखों में
अभी कुछ और तिरा इंतिज़ार कर लेंगे
हम अपने ख़ल्क़ की दुनिया सँवार कर 'ख़ुशतर'
हुसूल-ए-रहमत-ए-पर्वरदिगार कर लेंगे
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