Ghazals of Mumtaz Ahmad Khan Khushtar
नाम | मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mumtaz Ahmad Khan Khushtar |
नज़्र-ए-तौबा हम करेंगे मय-परस्ती एक दिन
ना वो मसर्रत गुनाह में है न वो कशिश अब सवाब में है
मिरी ज़िंदगी का ये हाल था यही शक्ल-ए-राह-रवी रही
किसी की याद को अपना शिआ'र कर लेंगे
कहाँ सदमा नहीं होते कहाँ मातम नहीं होता
जुनून-ए-इश्क़ की ये फ़ित्ना-सामानी नहीं जाती
जो मेरी हालत पे हंस रहे हैं मुझे कुछ उन से गिला नहीं है
दुनिया वही है और वही सामान-ए-ज़िंदगी
दिल-ए-ना-सुबूर को फिर वही बुत-ए-बेवफ़ा की तलाश है
बज़्म-ए-नशात-ओ-ऐश का सामाँ लिए हुए