मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
नाम | मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Mumtaz Ahmad Khan Khushtar |
उसी को हम समझ लेते हैं अपना सादगी देखो
तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में
कहाँ रह जाए थक कर रह-नवर्द-ए-ग़म ख़ुदा जाने
जिस ने जी भर के तजल्ली को कभी देखा हो
जब से फ़रेब-ए-ज़ीस्त में आने लगा हूँ मैं
गुबार-ए-ज़िंदगी में लैला-ए-मक़्सूद क्या मअ'नी
ग़म-ओ-कर्ब-ओ-अलम से दूर अपनी ज़िंदगी क्यूँ हो
ग़म न अपना न अब ख़ुशी अपनी
नज़्र-ए-तौबा हम करेंगे मय-परस्ती एक दिन
ना वो मसर्रत गुनाह में है न वो कशिश अब सवाब में है
मिरी ज़िंदगी का ये हाल था यही शक्ल-ए-राह-रवी रही
किसी की याद को अपना शिआ'र कर लेंगे
कहाँ सदमा नहीं होते कहाँ मातम नहीं होता
जुनून-ए-इश्क़ की ये फ़ित्ना-सामानी नहीं जाती
जो मेरी हालत पे हंस रहे हैं मुझे कुछ उन से गिला नहीं है
दुनिया वही है और वही सामान-ए-ज़िंदगी
दिल-ए-ना-सुबूर को फिर वही बुत-ए-बेवफ़ा की तलाश है
बज़्म-ए-नशात-ओ-ऐश का सामाँ लिए हुए