मौत को ज़ीस्त तरसती है यहाँ
मौत ही कौन सी सस्ती है यहाँ
दम की मुश्किल नहीं आसाँ करते
किस क़दर उक़्दा-परस्ती है यहाँ
सब ख़राबे हैं तमन्नाओं के
कौन बस्ती है जो बस्ती है यहाँ
छोड़ो बे-सर्फ़ा हैं सावन भादों
देखो हर आँख बरसती है यहाँ
अब तो हर औज का तारा डूबा
औज का नाम ही पस्ती है यहाँ