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पास अपने बोरिया बिस्तर न था - मुख़तार शमीम कविता - Darsaal

पास अपने बोरिया बिस्तर न था

पास अपने बोरिया बिस्तर न था

इतना सरमाया भी अपने घर न था

दश्त जंगल साइबान-ओ-दर न था

मैं ही मैं था और कोई मंज़र न था

दाएरों में भी न गुज़री ज़िंदगी

ख़्वाहिशों का भी कोई मेहवर न था

एक ज़ंजीर-ए-हवस कार-ए-निशात

और कोई सिलसिला हट कर न था

क़त्ल करता था मुझे वो पय-ब-पय

उस के हाथों में मगर ख़ंजर न था

अपने ही हम-ज़ाद से डरता हूँ मैं

यूँ किसी आसेब से कुछ डर न था

हम ये सौदा अपने सर में ले चले

उस गली में एक भी पत्थर न था

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In Hindi By Famous Poet Mukhtar Shameem. is written by Mukhtar Shameem. Complete Poem in Hindi by Mukhtar Shameem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.