नामा-ए-गुल में किसी शोख़ की तहरीर का रंग
नामा-ए-गुल में किसी शोख़ की तहरीर का रंग
दिल-ए-पुर-ख़ूँ की उभरती हुई तस्वीर का रंग
वो तही-माया पशेमान-ए-वफ़ा हैं हम लोग
अपनी तक़रीर में जादू है न तहरीर का रंग
सब्ज़-दर-सब्ज़ दरख़्तों में चला आग का फाग
उजला उजला है मिरे ख़्वाब की ताबीर का रंग
क़त्ल होना है सर-ए-शाम-ए-तमन्ना हर रोज़
रोज़ लाना है नई सुब्ह की तनवीर का रंग
रंग देता है कहीं आइना-ए-नाम-ओ-नुमूद
ख़ूब खिलता है कहीं जौहर-ए-तौक़ीर का रंग
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