ख़ुद अपने आप को धोका दिया है
ख़ुद अपने आप को धोका दिया है
हमारे साथ ये अक्सर हुआ है
ये मुझ से ज़िंदगी जो माँगता है
न जाने कौन ये मुझ में छुपा है
यही मेरी शिकस्तों का सिला है
कोई मेरे बदन में टूटता है
किताब-ए-गुल का रंगीं हर वरक़ है
तुम्हारा नाम किस ने लिख दिया है
सलीब-ए-वक़्त पे तन्हा खड़ा हूँ
ये सारा शहर मुझ पर हंस रहा है
कभी नींद आ गई दीवानगी को
कभी सहरा भी थक कर सो गया है
'शमीम' इक बर्ग-ए-आवारा था 'जामी'
ख़लाओं में कहीं अब खो गया है
(385) Peoples Rate This